Wednesday 1 April 2015

यह बात समझते क्यों नहीं

मन तड़प रहा है,
दिल सुलग रहा है,
यह बात समझते क्यों नहीं.

भावनाएं मर रही है,
निराशाएं बढ़ रही है,
यह बात समझते क्यों नहीं.

मैं रो रहा हूँ,
तिल तिल मर रहा हूँ,
यह बात समझते क्यों नहीं.

मुस्कान हठ रही है,
सिसकियाँ निकल रही है,
यह बात समझते क्यों नहीं.

मित्रता घट रही है,
पात्रता रह गई है,
यह बात समझते क्यों नहीं.

वक़्त निकल रह है,
दूरियां बढ़ा रहा है,
यह बात समझते क्यों नहीं.

CA Pankaj Jain.

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